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क्व॑ स्विदासां कत॒मा पु॑रा॒णी यया॑ वि॒धाना॑ विद॒धुर्ऋ॑भू॒णाम्। शुभं॒ यच्छु॒भ्रा उ॒षस॒श्चर॑न्ति॒ न वि ज्ञा॑यन्ते स॒दृशी॑रजु॒र्याः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kva svid āsāṁ katamā purāṇī yayā vidhānā vidadhur ṛbhūṇām | śubhaṁ yac chubhrā uṣasaś caranti na vi jñāyante sadṛśīr ajuryāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्व॑। स्वि॒त्। आ॒सा॒म्। क॒त॒मा। पु॒रा॒णी। यया॑। वि॒ऽधाना॑। वि॒ऽद॒धुः। ऋ॒भू॒णाम्। शुभ॑म्। यत्। शुभ्राः। उ॒षसः॑। चर॑न्ति। न। वि। ज्ञा॒य॒न्ते॒। स॒ऽदृशीः॑। अ॒जु॒र्याः ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:51» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (शुभ्राः) चमकीली (सदृशीः) तुल्य (अजुर्याः) नहीं जीर्ण अर्थात् नवीन (उषसः) प्रातर्वेलायें (शुभम्) कल्याण को (चरन्ति) प्राप्त होती हैं (आसाम्) इनके मध्य में (कतमा) कौन सी (पुराणी) पुरानी (क्व) किस में (विधाना) करती (यया) जिससे (ऋभूणाम्) बुद्धिमानों का (स्वित्) क्या (विदधुः) विधान करें ऐसा (न) नहीं (वि, ज्ञायन्ते) जाना जाता है, इस प्रकार की स्त्रियों को श्रेष्ठ जानें ॥६॥
भावार्थभाषाः - जैसे सम्पूर्ण प्रातर्वेला तुल्य होती हैं, वैसे ही पतियों के साथ सदृश स्त्रियाँ प्रशंसा करने योग्य होती हैं, वह सदा ही युवावस्था में युवा पुरुषों को प्राप्त होकर आनन्दित हों, नहीं जाना जाता है कि कौन नवीन कौन प्राचीन प्रातर्वेला होती है, वैसे ब्रह्मचर्य्य से युक्त कन्या होती हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्या शुभ्राः सदृशीरजुर्या उषसः शुभं चरन्त्यासां कतमा पुराणी क्व विधाना ययर्भूणां स्विद् किं विदधुरेवं न वि ज्ञायन्ते इत्थंभूताः स्त्रियो वरा विजानीत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्व) कस्मिन् (स्वित्) प्रश्ने (आसाम्) (कतमा) (पुराणी) पुरातनी (यया) (विधाना) (विदधुः) विदध्यासुः (ऋभूणाम्) धीमताम् (शुभम्) कल्याणम् (यत्) याः (शुभ्राः) भास्वराः (उषसः) प्रातर्वेलाः (चरन्ति) गच्छन्ति (न) निषेधे (वि) (ज्ञायन्ते) (सदृशीः) समानाः (अजुर्याः) अजीर्णाः ॥६॥
भावार्थभाषाः - यथा सर्वाः प्रातर्वेलाः सदृश्यः सन्ति तथैव पतिभिः सदृशा भार्याः प्रशंसनीया भवन्ति ताः सदैव युवावस्थायां यूनः प्राप्यानन्दन्तु नैव विज्ञायते का नवीना का प्राचीनोषा वर्त्तते तद्वत्कृतब्रह्मचर्याः कन्या भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जशी प्रत्येक उषा तुलना करण्यायोग्य असते तशा पतीबरोबर त्यांच्यासारख्या भार्या प्रशंसनीय असतात. त्या सदैव युवावस्था प्राप्त करून युवा पुरुषांबरोबर आनंदित राहाव्यात. कोणती उषा नवीन व कोणती प्राचीन हे कळून येत नाही. तशाच ब्रह्मचर्ययुक्त (तेजस्वी) कन्या असतात. ॥ ६ ॥